मिसेज gupta की उम्र 40 वर्ष है। करीब 2 साल से लगातार गंभीर बैक पेन से पीड़ित हैं। उनका वजन 64 किलो है। उन्हें डायबिटीज की भी समस्या है। लगातार गंभीर बैक पेन के कारण उन्हें बेड रेस्ट की सलाह दी गई थी। कई डॉक्टर्स को दिखाने के बाद करीब एक साल तक दवाइयां लीं, लेकिन दर्द में सुधार नहीं हुआ। एक्स-रे और एमआरआई की जांच में सामने आया कि उनकी स्पाइन के एल 1[L 1] लेवल में फ्रैक्चर था।जिसके लिए हर जगह केवल स्क्रू या नट बोल्ट [फिक्सेशन सर्जरी ]की सलाह दी गई !लेकिन सर्जरी से डर लगने के कारण इलाज की हिम्मत नहीं हुई ! मोटापे और बढ़ती डायबिटीज को ध्यान में रखते हुए उनका ट्रीटमेंट किया गया, जो अपने आप में एक बड़ा चैलेंज था। उनका ”मिनिमल इंवेजिव वट्रिबोप्लास्टी स्पाइन सर्जरी” किया गया। डायबिटीज को धीरे-धीरे कंट्रोल करके ही इस सर्जरी को करना बेहतर विकल्प होता है।
इसमें लोकल एनेस्थीसिया[xylocaine 2% और लाइट सीडेशन[midazolam] देने के बाद,फ्लूरोस्कोपिक गाइडेंस में मिनिमल इंवेजिव प्रोसीजर फॉलो किया जाता है। स्पेशल नीडल से त्वचा पर दो बारीक छेद किए गए। नीडल को एक्सरे एवं dye की मदद से वर्टिब्रा कॉलम में डाला गया। बोन सीमेंट से बनी पीएमएमए (पॉली मिथाइल मेथ एक्रीलेट) को फ्रैक्चर की जगह पर इंजेक्ट किया गया और कुछ मिनट के लिए छोड़ा गया। प्रभावित जगह को बोन सीमेंट तुरंत ही सपोर्ट देती है। यह वर्टिब्रा को मजबूत बनाती है। भविष्य में होने वाले फ्रैक्चर से बचाती है।जिसके करणमरीज़ का दर्द खतम हो जाता है !
बढ़ रहा है फ्रैक्चर रिस्क
भारत में करीब लाखों से अधिक लोग ऑस्टियोपोरोसिस या कमर की चोट से परेशान हैं।जानकारी के अभाव एवं सर्जरी से डर लगने के कारण इलाज नहीं ले पा रहे! JAIPUR राजस्थान स्थित APEX HOSPITAL & JPRC SPINE CENTRE[department of neurosurgery&pain medicine team के हेड डॉ ललित भारद्वाज[न्यूरोसर्जन ] एवं डॉ संजय शर्मा[इंटरवेंशनल स्पाइन पैन फिजिशियन ] का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ लोगों में बोन मिनरल डेंसिटी घटने लगती है। ऐसे में हड्डियों में फ्रैक्चर का रिस्क बढ़ रहा है, खासकर स्पाइन में। कंप्रेशन फ्रैक्चर तब होता है, जब स्पाइन की कमजोर हड्डी क्षतिग्रस्त हो जाती है। इसमें बैक पेन अधिक होता है। जब कई हड्डियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो लंबाई पर असर पड़ने के साथ बॉडी पोस्चर भी प्रभावित होती है। कई मरीजों में दर्द लगातार होता है, क्योंकि लगातार हड्डियां क्षतिग्रस्त होती रहती हैं।
क्या है वर्टिब्रोप्लास्टी
स्पाइन के ज्यादातर फ्रैक्चर को ठीक करने से पहले बेड रेस्ट कराया जाता है, ताकि दर्द पूरी तरह से खत्म हो जाए। दर्द निवारक दवाएं, बैक ब्रेसेस और फिजिकल थेरेपी भी दी जा सकती है। कभी-कभी मरीज की स्पाइन को तत्काल बचाने के लिए सर्जरी की जाती है। इसमें बोन ग्राफ्ट या इंटरनल मेटल डिवाइस की मदद ली जाती है। हाल ही नई नॉन-सर्जिकल ट्रीटमेंट का प्रयोग किया गया है, जिसे वर्टिब्रोप्लास्टी कहते हैं। यह उन मरीजों के लिए अच्छा विकल्प है,इसके तहत वो मरीज़ जिन्हें बेड रेस्ट, एनालजेसिक्स और बैक ब्रेसिंग देने के बाद भी राहत नहीं मिलती। कि वर्टिब्रोप्लास्टी में मेडिकल ग्रेड सीमेंट को एक नीडल के माध्यम से दर्द वाले में हिस्से में इंजेक्ट किया जाता है। इसकी मदद से मरीज अपने रोजमर्रा के काम निपटा सकता है, साथ ही एनालजेसिक्स लेने से भी बच सकता है। मल्टीपल मायलोमा, हिमेंजीओम और कई स्पाइनल बोन कैंसर में जहां परंपरागत थेरेपी भी काम नहीं करती, ऐसे में वर्टिब्रोप्लास्टी कारगर साबित होती है। वर्टिब्रोप्लास्टी सुरक्षित भी है। अगर आपको हड्डी टूटने (ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर वर्टिब्रा) के बाद काफी बैक पेन रहता है, तो दो हफ्तों का बेड रेस्ट, दर्दनिवारक दवाएं लेने के बावजूद भी आराम नहीं मिलता है। तो आप वर्टिब्रोप्लास्टी भी करवा सकते हैं।जिससे आपका दर्द तुरंत खतम हो सकता है
क्या-क्या हैं इसके फायदे
*दर्द में तुरंत बहुत कमी आ जाती है
*कुछ मामलों में दर्द निवारक दवाओं की भी जरूरत नहीं होती है।
*आपकी कार्यक्षमता बढ़ाता है।
*फ्रैक्चर में राहत देकर दर्द कम करता है।
*रोजमर्रा की एक्टिविटी करने के लिए तैयार करता है।
*ऑस्टियोपोरोसिस और स्ट्रेंथनिंग के दौरान हड्डियों के बीच में हुई जगह को भरने के लिए सीमेंट का इस्तेमाल होता है, जिससे भविष्य में फ्रैक्चर होने की आशंका कम हो जाती है।
*संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।
*यह प्रक्रिया 30 मिनट से भी कम समय में की जाती है, क्योंकि सीमेंट जल्द ही सख्त हो जाती है और दर्द भी कम हो जाता है।
*जल्द ही मरीज चलने-फिरने लगता है और उसी दिन घर भी जा सकता है।
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