आज महानगरों की आपाधापी भरी तनावपूर्ण जीवनशैली, गलत रहन-सहन, शारीरिक श्रम की कमी, बैठने व सोने के गलत ढंग,लम्बे समय तक लैपटॉप या मोबाइल पर काम करना भीड़ भरी एवं गड्डो भरी सड़कों पर गाड़ी चलाने आदि के कारण लोगों में रीढ़ (स्पाइन) संबंधी बीमारी तेजी से फैल रही है । इन दिनों बड़ी संख्या में युवा रीढ़ के विकारों से ग्रस्त हैं । इन विकारों में स्लिप्ड डिस्क और साइटिका की समस्या प्रमुख है । रीढ़ की हड्डी में खराबी के कारण या तो पीठ या कमर में असहनीय दर्द होता है,हाथ पैरो में सुन्नपन ,भारीपन झनझनाहट ,खिचाव जलन इत्यादि या स्थिति बिगड़ने पर मरीज के हाथ पैर[लकवाग्रस्त ] विकारग्रस्त हो सकते हैं या मल -मूत्र का नियंत्रण खोना भी संभव हो सकता है ।
स्लिप डिस्क रोग और कारण
स्लिप्ड डिस्क की समस्या से हर व्यक्ति अपने जीवन-काल में कभी न कभी ग्रस्त हो सकता है, ज्यादातर केसेस में C5-6-7 या L4-5 ,L5-S1 level प्रभावित होता है लेकिन पहली बार स्लिप्ड डिस्क होने वाले 100 लोगों में से केवल पांच व्यक्ति को सर्जरी की जरुरत पड़ती है और कुछ लोग बेडरेस्ट व दवाओं से कुछ दिन में ही ठीक हो जाते हैं |कुछ लोगो में यह लक्षण दुबारा प्रकट हो जाते है. जिसके लिए मरीज़ किसी अन्य डॉक्टर से इलाज चालू कर देता है ,ज्यादातर मरीज़ो में डॉक्टर, दर्द निवारक या एक्सरसाइज या आराम करना ही इलाज समझता है ,जो की तर्कसंगत नहीं होता है ,कुछ महीनो या साल बाद मरीज़ ये कहता है की कुछ साल पहले ये समस्या हुई,इलाज भी हो गया ,लईकिन अब कुछ दिनों से ये दुबारा हो गया !हकीकत में उसका मर्ज़ जाने बिना दर्द निवारक से आराम मिल गया ,मुख्य कारण को समझे बिना इलाज उचित नहीं है
वस्तुतः रीढ़ की हड्डी के कारण ही हम सीधा चल पाते हैं | जो की शरीर का संतुलन बनाये रखती है साथ ही दिमाग के साथ सामंजस्य रखते हुए शरीर पर नियंत्रण रखती है !शरीर को अत्यधिक मोड़ने या गलत तरीके से झुकने से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है | कभी-कभी अपनी सामर्थ्य से अधिक बोझ उठाने के कारण भी हम स्लिप्ड डिस्क को बुलावा देते हैं । इससे हमारी कमर, गर्दन व कूल्हों पर बुरा प्रभाव पड़ता है । शरीर में सुन्नपन या लकवा भी इस समस्या के दुष्प्रभाव से हो सकते हैं । इसके अलावा या जिम में गलत तरीके से वजन उठाना व्यायामों को समुचित रूप से न करना,बिना किसी ट्रेनर के अनुचित व्यायाम नुक्सान दायक हो जाता है स्लिप्ड डिस्क की समस्या पैदा कर सकता है ।
स्पाइन की बनावट
रीढ़ की हड्डी प्रायः 33 हड्डियों के जोड़ों से बनती है । प्रत्येक दो हड्डियां आगे की तरफ एक डिस्क के द्वारा और पीछे की तरफ दो जोड़ों के द्वारा जुड़ी रहती हैं । ये डिस्क प्रायः रबड़ की तरह होती हैं, जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ-साथ उन्हें लचीलापन प्रदान करती हैं। इन्हीं डिस्क में उत्पन्न हुए विकारों को स्लिप्ड डिस्क कहते हैं |
स्लिप् डिस्क के लक्षण
1. स्लिप्ड डिस्क की समस्या में कमर दर्द एक प्रमुख लक्षण है । यह दर्द कमर से लेकर पैरों तक जाता है ।कभी कभी केवल पैरो में ही दर्द होता है ,
2. दर्द के साथ ही साथ हाथ -पैरों में सुन्नपन महसूस होता या हाथ- पैर भारी महसूस होते हैं ।
3. कई बार लेटे-लेटे भी कमर से पैर तक असहनीय दर्द होता रहता है
4. नसों में एक अजीब प्रकार का खिंचाव व झनझनाहट होना स्लिप्ड डिस्क का एक अन्य लक्षण है,यह झनझनाहट पूरी नस में दर्द या खिचाव उत्पन्न करती है ।
5. डिस्क के प्रभावित भाग पर सूजन होना ।कमर भारी भारी महसूस होना
इस समस्या से निजात पाने के लिए चार से छह सप्ताह का समय लगता है । कई बार व्यायाम व दवाओं से भी राहत मिलती है । यदि मरीज को अत्यधिक पीड़ा हो, तो दो से तीन दिनों तक बेड रेस्ट करने की सलाह दी जाती है । ऐसी अवस्था तब उत्पन्न होती है, जब डिस्क का अंदरूनी भाग बाहर की तरफ झुकने लगता है । स्लिप्ड डिस्क के लक्षण और इसमें होने वाला नुकसान इस पर निर्भर करता है कि डिस्क का झुकाव कितना हुआ है ।
स्लिप डिस्क का इलाज
स्लिप्ड डिस्क के इलाज के लिए ज्यादतर डॉक्टर केवल दर्द निवारक या व्यायाम या आराम बताते है,इन सब प्रयोग के बावजूद यदि मरीज़ को आराम नहीं मिलता है ताऊ इसका एक मतलब होता है ,या तो डॉक्टर का डायग्नोसिस गलत है या हम इलाज नहीं ले रहे ?ऐसे हालत में कई बार सर्जरी भी करनी पड़ती है । कई बार व्यायाम या दवाएं जहां कारगर नहीं होती हैं, वहां सर्जरी करना आवश्यक हो जाता है । डिस्क से जुड़े भाग जो बाहर की तरफ आने लगते हैं, उन्हें ठीक करना इस सर्जरी का लक्ष्य होता है । इस प्रक्रिया को मिनिमल इनवेसिव तकनीक जैसे इंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी के नाम से जाना जाता है, लेकिन सर्जरी का भी सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं-इंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी ।
स्लिप् डिस्क के इलाज की प्रक्रिया
इंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी के अंतर्गत स्पाइन तक पहुँचने के लिए एक बहुत ही छोटा चीरा [7मिलीमीटर] से 2.5cm लगाया जाता है ।साथ ही ट्रांसफोरमिनल इंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी में टाँकारहित प्रक्रिया है डिस्क को देखने के लिए इंडोस्कोप की सहायता ली जाती है । इंडोस्कोप के एक किनारे पर प्रकाश स्रोत और कैमरा लगा होता है । स्क्रीन पर रीढ़ के अंदर का सारा हिस्सा नज़र आता है एनेस्थीसिया लोकल हो या जनरल यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्लिप्ड डिस्क पीड़ित शख्स के स्पाइन में समस्या कहा पर है, चीरा लगाकर इंडोस्कोप से देखते हुए उस तंत्रिका पर पड़ने वाले दबाव को दूर कर देते हैं, जिसके कारण दर्द हो रहा था । मरीज़ उसी दिन से चलना चालू कर देता है ,एवं सरे नित्य करम कर सकता है औसतन तीन सप्ताह बाद लोग अपनी दिनचर्या फिर से शुरू करने लायक हो जाते हैं ।
कमर दर्द से बचने के उपाय -
1. व्यायाम करते समय यह हमेशा याद रखें कि आप जो भी व्यायाम करें, वह अधिक जटिल न हो |
2. उठने-बैठने के ढंग में परिवर्तन करें । बैठते वक्त सीधे तन कर बैठें ।
3. कमर झुकाकर न बैठें और न ही चले । कंप्यूटर पर काम करते समय झुककर न बैठें और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें |
4. अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक वजन न उठाएं | नर्म या गुदगुदे बिस्तर पर न सोएं बल्कि सपाट पलंग या तख़्त पर सोएं |कम से कम फोम के गद्दे प्रयोग न करे !
5. वजन को नियंत्रित रखें |
6. तनाव की स्थितियों से बचें | कोई भी मनोरंजक क्रियाकलाप करें, जिससे ध्यान दूसरी ओर बंटे |
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