Tuesday, July 31, 2018

कमर दर्द[स्लिपडिस्क ] एक ऐसी दिक्कत है जो 80 फीसद लोगों को जीवन में एक बार जरूर होती है। हर कमर दर्द का कारण स्लिप डिस्क नहीं होता और हर स्लिप डिस्क का इलाज आपरेशन नहीं होता है। 

क्या है स्लिप डिस्क 

स्पाइन में दो हड्डियों के बीच एक स्पंजनुमा संरचना होती है जिसका मुख्य कार्य शॉक एब्जार्बर का होता है। डिस्क का बाहरी हिस्सा एक मजबूत झिल्ली का बना होता है व बीच में एक तरल जेलीनुमा पदार्थ होता है। यह पदार्थ उम्र के साथ-साथ सूखने लगता{degeneration] है। जब किसी दबाव से गहरी झिल्ली [annular tear] फट  जाती है या कमजोर हो जाती है तो जेलीनुमा पदार्थ निकलकर नसों पर दबाव डालता है जिसकी वजह से पैरों में दर्द या सुन्नपन होता है। नसों पर दबाव डिस्क के अलावा अन्य ऊतकों,जैसे फ़ैसेट जॉइंट्स या लिगामेंट्स  के बढ़ने से भी होता है। 

लक्षण

स्लिप डिस्क के लक्षण नस पर दबाव के आधार पर होता है।ज्यादातर केसेस में L4-5 &L5S1 level में ये बीमारी होती है 
 इसमें सामान्यत: कमर में दर्द होना व पैरों में दर्द या सुन्नपन होता है। बाद में पैर के अंगूठे या पंजे में कमजोरी भी आ सकती है। अगर स्पाइनल कार्ड के बीच में दबाव पड़ता है तो बैठने के स्थान पर सुन्नपन या मल-मूत्र का नियंत्रण भी प्रभावित हो सकता है। भारी सामान उठाने, ज्यादा देर खड़े होने, खांसने व छींकने से दर्द बढ़ सकता है। इसमें एमआरआई तथा कमर का एक्सरे जांच की जाती है। लेकिन xrays में नस का दबाव कभी भी  नज़र  नहीं आता  है !

उपचार

90% मरीजों को आपरेशन की जरूरत नहीं होती है किंतु इसमें दो से तीन हफ्ते तक पूर्ण आराम करना चाहिए। दर्द निवारक दवाएं और देखभाल  कुशल न्यूरोसर्जन  या स्पाइन पैन स्पेशलिस्ट के निर्देशन में होनी चाहिए। कमर में खिंचाव का बहुत अधिक महत्व नहीं है।
ज्यादा तर केसेस में डॉ द्वारा  काफी लम्बे समय तक आराम या एक्सरसाइजेज  जो की फिजियोथेरेपी  के रूप दी जाती है ,एक समय सीमा में ही अपनाना चाहिए। केवल xrays  के आधार पर स्पाइन के रोग में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए !

सावधानी

स्लिप डिस्क के मरीजों को भारी सामान नहीं उठाना चाहिए। आगे झुकना और अवांछनीय ज्यादा व्यायाम भी नहीं करना चाहिए। 

कब होती है सर्जरी

न्यूरोसर्जन डॉ ललित भारद्वाज जो की JPRC  SPINE  CENTRE जयपूर ,जो की देश विदेश के संस्थानों से उच्च स्तरीय ट्रेनिंग ले कर  साथ में जाने माने इंटरवेंशनल स्पाइन पैन स्पेशलिस्ट  डॉ.संजय शर्मा जो की मिनिमल इनवेसिव तकनीक से चीरफाड़ रहित इलाज करते  हैं डॉ संजय शर्मा के अनुसार जब मेडिकल उपचार से दर्द कम न हो, पैरों में कमजोरी आ जाए और मल मूत्र का विसर्जन प्रभावित हो तथा हड्डी खिसकना, गलना अथवा स्पाइन की कोई अन्य बीमारी हो तो सर्जरी ही कारगर होती है। उन्होंने कहा वैसे तो माइक्रोस्कोप और बिना माइक्रोस्कोप के सर्जरी होती है किंतु नयी विधा के रूप में transforaminal or interlaminar[easygo]  इंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी  विकसित हुई है। इसमें 7 mm to  2 सेमी के चीरे से इंडोस्कोप की मदद से दबी हुई नस के ऊपर की हड्डी का कुछ हिस्सा व डिस्क निकाली जाती है जिससे नस का दबाव खत्म हो जाता है। डॉ.संजय शर्मा  ने बताया आपरेशन में दूरबीन विधि से ज्यादातर मांसपेशियों और ऊतकों को नहीं निकाला जाता है इसलिए मरीज को आपरेशन के बाद रिकवरी में कम समय लगता है। मरीज को उसी दिन अथवा दूसरे दिन घर भेजा जा सकता है। इंडोस्कोपी द्वारा सभी मरीजों का इलाज संभव नहीं है। उपयुक्त मरीज का चुनाव लक्षणों व जांच रिपोर्ट पर निर्भर करता है। भविष्य में स्पाइन की अन्य बीमारियों का भी निदान संभव होगा। आपरेशन के बाद मरीज सीधे बैठ और चल सकता है। 10 से 15 फीसद मरीजों में दोबारा से स्लिप डिस्क के लक्षण आ सकते हैं, जिन मरीजों में ज्यादा समय से बीमारी हो या आपरेशन से पहले पैरों में कोई कमजोरी आ चुकी हो, उनमें कुछ लक्षण रह सकते हैं।

सामाजिक भ्रान्ति -

अक्सर हमारे समाज में स्पाइन के इलाज, विशेष रूप से सर्जरी  को लेकर काफी तकरार  है !ज्यादातर डॉक्टर्स  जो की फिजिशियन है ,या जो डॉक्टर सर्जरी की आधुनिक तकनीक से अनभिग है ,द्वारा मरीज़ को बेवजह डराया  जाता  की ,ऑपरेशन से आपको हमेशा के लिए लकवा ,मल ,मूत्र  का नियंत्रण जैसी समस्या  जिंदगी  भर रह सकती है ,जो की सत्य से परे है !आज के समय में एडवांस टेक्निक्स के आने से इस प्रकार की समस्या असंभव है !

लम्बे समय तक मरीज़ को बेड  रेस्ट बता कर ,साथ ही दर्द निवारक दवा दे कर हम मरीज़ की मूल समस्या का निवारण नहीं करते,बल्कि टेम्पररी  इलाज कर,उसके साथ खिलवाड़ करते है !

समय रहते यदि वक्त से बीमारी का इलाज हो जाये तो ,बवजह पैसा और स्वस्थ्य दोनों का नुकसान नहीं होता !